उत्तराखंड में थारू जनजाति 


उत्तराखंड में थारू जनजाति मुख्य रूप से उधम सिंह नगर के खटीमा ,नानकमत्ता ,सितारगंज,गूलरभोज सहित लगभग 150  गावो में निवास करती है। जनसख्या की  दृष्टि से थारू समुदाय उत्तराखंड का सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है. उत्तराखंड के आलावा ये उत्तर प्रदेश के लखीमपुर,गोंडा,बिहार के चम्पारण और दरभंगा तथा नेपाल के पूरब में भेची से लेकर पश्चिम  में महाकाली नदी तक तराई एवं भाभर क्षेत्र में  फैले हुए है। 


थारू लोग कई जातियों और उपजातियो में विभक्त है। सामान्यतः इन्हे किरात या शिकारी वंश का माना  जाता है थारू    श ब्द की उत्पत्ति  राजस्थान के थार मरुस्थल में बसने के कारण  हुई ।  थारू लोग खुद को  महाराणाप्रताप  का वंशज मानते है।    ये लोग कद में छोटे ,पीट वर्ण ,छोड़ी मुखाकृति तथा समतल नाक वाले होते है,जो की मंगोल प्रजाति से मिलते है। पुरुषो की तुलना में  स्त्रियाँ  अधिक आकर्षक कोई है। 


भाषा - इनकी अपनी कोई विशिष्ट  भाषा नहीं है। जिस भाषा क्षेत्र के समीप इनका निवास होता है ,उसी भाषा को इन्होने अपना लि या  है। उत्तराखंड में निवास करने वाले थारू अवधी ,मिश्रित कुमाऊनी ,नेपाली और भावरी  आदि भाषाए  बोलते है। 


पुरुष धोती  ,कुरता पैजामा और साफा पहनते है। कुछ लोग सर पर चोटी  भी रखते है,जबकि स्त्रियाँ  रंगीन लहंगा,काली ओढ़नी,चोली और बूटेदार कुर्ता  पहनती है। कुछ स्त्री  पुरुष दोनों अपने शरीर पर टैटू गुदवाते है। ये लोग सोने ,चाँदी  ,पीतल  और कासे के आभूषण पहनते है। 


 आवास -  ये लोग अपना आवास बनाने के लिए लकड़ी, पत्तो और नरकुल का प्रयोग करते है। अपने घर की दीवारों पर  सुं दर चित्रकारी करते है। इनका व्यवसाय खेती  और पशुपालन होता है। घर के सामने छोटा सा पूजा स्थल बनाते है और अपने ग्राम देवता की पूजा करते है। 


 भोजन --  थारू लोगो का मुख्य भोजन चावल और मछली है। इसके आलावा ये दाल,दूध ,मास और  अंडो का भी प्रयोग करते है। तम्बाकू और मदिरा इनका मुख्य पेय है। ये चावल से मदिरा का निर्माण करते है जिसे जाड कहते है।  सामाजिक रूप से यह कई जातियों और गोत्रो में बटे  होते है।  बड्वायक,बट्टा  ,रावत ,वृत्तिया  ,महतो ,व डहेत इनके प्रमुख गोत्र है। सभी गोत्रो में बड्वायक सबसे उच्च मने जाते है। इन लोगो में  पहले बदला विवाह अर्थात बहनो के आदान प्रदान की प्रथा का प्रचलन था। लेकिन  समय के साथ साथ प्रथाए  बदल गयी , अब इनमे तीन तिकड़ी   का प्रचलन है। दोनों पक्षों की और से विवाह तय हो जाने को पक्की  पौढ़ी कहते है। सगाई की रस्म को अपना पराया कहा जाता है। सगाई के बाद और विवाह से 15 दिन पहले लड़के  पक्ष  के लोग लड़की के घर आते है और विवाह की तिथि निश्चित करते है।  इस रस्म को बात कट्टी  कहा जाता है। 




इन लोगो में विवाह प्रायः  माघ के महीने में होता है। विवाह के बाद लड़की एक दिन के लिए लड़के के घर आती है फिर अपने भाई या पिता के साथ मायके लौट जाती है।  विवाह के 2  या 3  महीने बाद चैत या बैसाख में लड़की स्थाई रूप से अपने पति के घर जाती है। इस रस्म को चाला कहा जाता है। 

इनमे विधवा विवाह का भी प्रचलन है। यदि कोई विवाहित कन्या ,जिसका चाला न आया हो ,अथवा उसका पति मर जाय  तो लड़की का पिता उसकी शादी करने के बाद एक भोज का आयोजन करता है ,जिसे लठभारवा भोज कहता है। इनमे  आवश्यक्तानुसार एक पत्नी या बहुपत्नी विवाह दोनों हो सकता है। इनकी महिलाओ को पुरुषो की अपेक्षा उच्च स्थान  प्राप्त है। इसी कारण  कई परिवारों में पुरुषो को भोजनालय में जाने का अधिकार नहीं होता है। इनमे संयुक्त और एकाकी परिवार प्रथा मिलती है। ,जिसका मुखिया परिवा र का सबसे वृद्ध व्यक्ति होता है। थारूओ के परिवार में मातृसत्तात्मक ,पितृसत्तात्मक एवं पितृस्थानीय पारिवारिक परम्परा पाई जाती है। 


धर्म - थारू ,हिन्दू धर्म को मानने वाली जनजाती  है।  खगभूत ,माँ काली ,नगरयाई देवी ,भूमिया ,कोरोदेव ,राकत  ,कलुआ आदि इनके स्थानीय  देवता है। ये लोग अपने पूर्वजो की भी पूजा करते है। 


त्यौहार - इस जनजाति के लोग दशहरा ,होली ,दिवाली और माघ की खिचड़ी आदि त्यौहार मानते है। बजहर नमक त्यौहार जेठ या बैसाख  में मनाया जाता है। 


थारू जनजाति दीपावली को शोक के रूप में मनाती है। इन  लोगो में होली आठ दिनों तक मनाई जाती है। फाल्गुन पूर्णिमा से लेकर अगले आठ दिनों तक रंगो का त्यौहार खेला जाता है,जिसमे स्तरीय और पुरुष दोनों मिलकर खिचड़ी नृत्य करते है

राजनैतिक व्यवस्था -- समाज के कुशल संचालन  के लिए  इन्होने अपने नियम कानून बनाए  है। इनकी अपनी पंचायते  और ग्रामीण अदालते होती है। अपराध करने वाले या नियमो का उल्लंघन करने वालो को शारीरिक या आर्थिक दंड दिया जाता है। 


अर्थव्यस्था - थारू लोग प्रायः सीधे सादे और ईमानदार होते है। इनका आर्थिक जीवन कृषि ,पशुपालन और आखेट (शिकार करने ) पर आधारित होता है। कुमाऊँ के तराई क्षेत्र के थारू स्थाई रूप से खेती और पशुपालन करते है।,जबकि भारत -नेपाल के दक्षिणवर्ती क्षेत्रों के लोग चलवासी खती करते है और शिकार कर जीवनयापन करते है। ये मुख्य रूप से धान की खेती करते है। इसके आलावा धान ,तिलहन ,गेहू एवं सब्जियों की खेती करते है और मछलियों का शिकार करते है। पशुपालन के लिए गाय भैस ,भेड  बकरी आदि का पालन करते है 


शिक्षित थारू लोग सरकारी नौकरी भी करते है.उत्तराखंड सरकार ने जनजातियों के लिए चार प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की है ,जिससे समाज के हासिये पर गए लोग मुख्य धारा से जुड़ सके।