उत्तराखण्ड 9 नवंबर 2000 को उत्तरप्रदेश से अलग होकर नए राज्य के रूप में हुई। यह देश का 27 वा राज्य बना। राज्य स्थापना के समय इसका नाम उत्तराँचल था , 1 जनवरी 2007 से इसका नाम उत्तराखण्ड कर दिया गया। यह देश का 11वा  हिमालयी  राज्य है। 


राज्य चिन्ह - उत्तराखंड के राजकीय चिन्ह में इसके भौगोलिक स्वरुप की झलक मिलती है। इस चिन्ह में एक गोलाकार मुद्रा में तीन पर्वत चोटियों की शृंखला और उसके नीचे गंगा की चार लहरों  को दर्शाया गया है। बीच में स्थित छोटी अन्य चोटियों से ऊँची है और और उसके मध्य में अशोक की लात अंकित है। अशोक की लाट के नीचे सत्यमेव जयते लिखा गया है. सत्यमेव जयते मुंडकोपनिषद से लिया गया है। 

राज्य पुष्प - उत्तराखंड का राजकीय पुष्प ब्रह्मकमल है। प्रदेश में इसकी 24 प्रजातियां पायी जाती है।  इस पुष्प का वैज्ञानिक नाम ससुरिया ओबेलेटा है।  इन्हे ब्रह्मकमल ,फेनेकमल तथा कस्तूराकमल  के नाम से भी जाना जाता है। इसके पुष्प बैगनी रंग के होते है। 

फूलो  की घाटी , केदारनाथ ,शिवलिंग बेस ,पिंडारी ग्लेशियर आदि क्षेत्रों में यह पुष्प अधिक पाया जाता है। स्थानीय भाषा में ऐसे कौल पदम कहा जाता है। इस पुष्प का वर्णन वेद पुराणों में भी मिलता है। महाभारत के वन पर्व में इसे  सौगंधिक पुष्प कहा गया है। मान्यता के अनुसार इस पुष्प को भगवान  केदारनाथ जी को अर्पित करने के बाद विशेष प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। 

राज्य पक्षी -  मोनाल उत्तराखंड का राजकीय पक्षी है। ऐसे हिमालयी मयूर के नाम से भी जाना जाता है। यह बहुत सुन्दर पक्षी होता है। मोनाल हिमांचल का राजकीय  तथा  नेपाल का राष्ट्रीय पक्षी भी है। 

मोनाल का वैज्ञानिक नाम लोपोफोरस इपीजेनस है। इसकी चार प्रजातियां पायी जाती है.उत्तराखंड,नेपाल,कश्मीर तथा असाम में स्थानीय भाषा में इसे  मन्याल या मुनाल के नाम से जाना जाता है। यह पक्षी हल्का काला ,नीला और हरे रंग के मिश्रण युक्त होता है। इसके सर पर मोर की तरह रंगीन कलगी होती है।  यह पक्षी अपना घोसला नहीं बनाता  बल्कि किसी चट्टान या पेड़ के खोखले तने में अपने अंडे देती है। 

राज्य पशु - कस्तूरी मृग उत्तराखंड का राजकीय पशु है। यहाँ इसकी चार प्रजातियां पायी  जाती है। यह मृग उत्तराखंड के आलावा कश्मीर,हिमांचल प्रदेश,और सिक्किम में भी पाया जाता है। 

कस्तूरी मृग का वैज्ञानिक नाम मास्कस काइसोगास्टर है। इसे हिमालयन मस्क डिअर के नाम से भी जाना जाता है। यह हल्का भूरे रंग का होता है तथा शरीर पर काले भूरे रंग के धब्बे पाए जाते है। नर मृग में कस्तूरी पायी जाती है। कस्तूरी इसकी नाभि के समीप एक गांठनुमा थैली होती है ,जो एक जटिल प्राकृतिक रसायन है। इसमें अद्वितीय सुगंध होती है। 

कस्तूरी का  उपयोग सुगंध के आलावा दमा ,निमोनिया,हृदय रोग ,टाइफायड ,मिर्गी और ब्रॉन्कॉरिस आदि रोगो के उपचार में होता है.  शायद इसी कारण इसका बहुत अधिक अवैध शिकार हुआ ,जिससे इस सुन्दर मृग के अस्तित्व पर खतरा मडराने लगा। इस मृग के संरक्षण के लिए सन 1972 में केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग में कस्तूरी मृग विहार की स्थापना की गयी। 

राज्य वृक्ष - उत्तराखंड का राज्य  वृक्ष बुरांश है. इसका वानस्पतिक नाम रोडोडेंड्रोन आर्बोरियम है। यह विशुद्ध पर्वतीय वृक्ष है ,ऐसे मैदानों में नहीं उगाया जा सकता। इसके  औषधीय गुणों ये युक्त पुष्पों से हृदय रोग का उपचार किया जाता है। इसका पुष्प फरवरी से अप्रैल के मध्य खिलता है।