Jaunsari Tribe /   जौनसारी जनजाति 

              जौनसारी समुदायउत्तराखंड का  दूसरा सबसे बड़ा जनजातीय समाज है इनका मुख्य निवास स्थल लघु हिमालयके उत्तरी पश्चिम भाग का भावर क्षेत्र है। इस क्षेत्र के अंतर्गत देहरादून ,चकराता कालसी ,त्यूनी ,लाखामंडल आदि क्षेत्र ,टिहरी का जौनपुर क्षेत्र तथा उत्तरकाशी का परगनेकाना क्षेत्र आता है। देहरादून के कालसी ,चकराता  व त्यूणी तहसील को जौनसार भाभर क्षेत्र कहा जाता है।     जौनसार भाभर क्षेत्र में लगभग 360 राजस्व गाँव है।  जौनसार भावर क्षेत्र की मुख्य भाषा जौनसारी है।  भावर के कुछ क्षेत्र में भावरी भाषा , देवधर में देवधारी व  हिमांचली भाषा भी  बोली जाती है। 


Jaunsari People / जौनसारी सामाजिक संरचना - जौनसारी लोग मंगोल और डोमो  प्रजातियों के मिश्रित लक्षण वाले लोग होते है। यह जनजाति खगास , कारीगर और हरिजन खगास नमक तीन वर्गो में विभाजित है। खगास   वर्ग में ब्राह्मण व राजपूत , कारीगर वर्ग में लोहार , सुनार ,नाथ , बागजी , ब ई  आदि और हरिजन खगेस वर्ग में कोल्टा , कोली और मोची आदि जातिया आती है। इनमे पितृ सत्तात्मक प्रकार की संयुक्त परिवार प्रथा पाई जाती है। परिवार का मुखिया सबसे बड़ा पुरुष सदस्य होता है,जो परिवार की संपत्ति की देखभाल करता है। इनके समाज में एक दूसरे को सहयोग देने की प्रबल भावना होती है। अब धीरे धीरे एकल  परिवार की प्रवृत्ति बाद रही है। 

     इनमे पहले बहुपति परिवाए का प्रचलन था। लेकिन अब यह प्रथा लुप्त हो चुकी है। अब इनमे बेवीकी , बोइदोदीकि ,और बाजदिया आदि प्रकार के विवाह प्रचलित है।  इन तीनो प्रकार के विवाहो में बाजदींया  सबसे शान शौकत का विवाह है , इस विवाह में कन्या पक्ष के लोग बारात लेकर वर पक्ष के घर जाते है  तलाक का अधिकार लड़के और लड़की को समान रूप से प्राप्त है। दोनों में सर कोई भी एक दूसरे को तलाक दे सकता है। जौनसारी समाज में महिलाओ को सम्मानीय स्थिति प्राप्त है। 


Jaunsari Dress /  जौनसारी वेशभूषा -- पुरुष सर्दियों में ऊनी कोट व ऊनी पैजामा ( झंगोली ) तथा ऊनी टोपी ( डिगुबा ) पहनते है। जबकि स्त्रियाँ  ऊनी कुर्ता ,ऊनी घाघरा  व डाट ( एक बड़ा रुमाल ) पहनती है।  गर्मियों में इनके पुरुष चूड़ीदार पायजामा , बंद गले का कोट व् सूती टोपी तथा स्त्रियां सूती घाघरा व् कुर्ती कमीज ( झगा ) पहनती है और कुर्ती के बाहर चोली ( चोलटि ) पहनती है। ये ऊन व अन्य चीजों से निर्मित जूते पहनते है जिसे आल कहा जाता है। आधुनिकता के इस दौर में कोट पेंट और साड़ी ब्लाउज का प्रचलन बढ़   रहा है।  



आवास -- जौनसारी लोग अपना घर लकड़ी और पत्थर से बनाते है जो दो , तीन या चार मंजिला तक हो सकता है। घर का मुख्य द्वार लकड़ी का होता है , जिस पर विभिन्न प्रकार की नक्काशी की गई होती है। 

Jaunsari Culture /  जौनसार की संस्कृति --  जौनसारी समाज हिन्दू धर्म को मानने  वाला समाज है। ये महासू ,वाशिक,बोठा ,पवासी ,व चोलदा आदि देवी देवताओ को मानते है। महासू ( महाशिव ) इनके सर्वमान्य व संरक्षक देवता है, जिनकी पूजा अर्चना पूरे समुदाय के लोग करते है। कुछ लोग भूत प्रेतों ,डाकिनी शाकनी , परियो और नागो की भी पूजा करते है। भावर में रहने वाले जौनसारी अपने को पांडवो का वंशज मानते है। इनके प्रमुख देवता पांचो  पांडव  और माता कुंती है। इनके मंदिरो में लकड़ी और पथरो का सम्मिश्रण होता है। हनोल इनका प्रमुख तीर्थ स्थल है। इसके अलावा लाखामंडल ,थैना व कालसी में भी इनके मंदिर है। इनके देवता इनके लोक कलाओ के संरक्षक है, जो इनके कलात्मक वस्तुओ के संग्राहलय की रक्षा करते है। 


Festival of Jaunsari Tribes /  मेले व त्यौहार -  बिस्सु ( बैसाखी ) , पंचाई ( दशहरा ), दियाई (दीपावली ), माघ त्यौहार , नूणाई , जागड़ा  आदि इनके विशिस्ट त्योहार , उत्सव व मेले है।  दीपावली इनका विशेष पर्व है , जिसे वे राष्ट्रीय दिवाली से एक महीने बाद मनाते है।  इस अवसर पर वे दीपक के बजाय भीमल की लकड़ियों का होला जलाते है और पांडवो एवं महासू देवता के गीत गाते है। होला को किसी खेत में ले जाकर भयलो  खेलते है। दूसरे दिन ( भिरुडी के दिन ) पुरुष पत्तेबाज़ी  नृत्य  करते  है।  पंचाई या दशहरा को स्थानीय भाषा में  पांडव  का त्योहार कहते है।  पांडव अश्विन शुक्ल सष्ठी  या सप्तमी तिथि को होती है।  उस दिन कई स्थानों पर मेला लगता है। विजय दशमी को स्थानीय भाषा में पायता  कहा  है। 



जागड़ा  महासू देवता का त्योहार है , जो भादो के महीने में मनाया जाता है। इस  दिन  देवता को मंदिर से ले जाकर पवित्र टोंस नदी में स्नान कराया जाता है। माघ त्यौहार पुरे माघ भर चलता है। इसमें  भेड़ , बकरा काटते है और एक दूसरे को भोज देते है।  पूरे महीने लोग रात को बारी बारी से सबके घर जाकर नाचते गाते है। 

  बैसाखी या बिस्सु मेला चार दिन तक चलने वाला त्यौहार है। इन  चार दिनों में चौलिथात ,ठाणा डांडा , चौरानी , नागथात , लुहन डांडा ,घिरती व् नगाय  डांडे आदि स्थानों पर मेले लगते है। इनमे चावल से बने पापड़ जिन्हे लाडू  एव शाकुली कहा जाता है , इन मेलो के मुख्य पकवान है।  यह जौनसार भाभर  बड़ा मेला माना  जाता है। इन मेलो को गनयात  भी कहते है। नुणाई  मेला सावन के महीने में मनाया जाता है। दशहरे को पांचो के रूप  में  मनाते है।  जन्माष्ठमी को  आठोइ  के रूप मनाते है। 

MAHASU  DEVTA  KI  DOLI  



  Folk Painting by Jaunsari Tribes / नृत्य एवम कला -- हारुल ( परात नृत्य ), रासो ,घूमसू ,झेला ,छोड़ो , धीई , घुंडचा , जंगबाज़ी , सराई , पौ णा ई , रेणारात  आदि जौनसार बबहार के प्रमुख नृत्य है। 


प्रमुख लोकगीत --हारुल ,मांगल , छोड़े ,शिलॉन्गु ,केदार छाया ,गोडवडा ,रणा रात ,बिरासु  आदि इनके प्रमुख लोकगीत है। 

Socioeconomic Status / आर्थिक गतिविधिया -- कृषि  और पशुपालन जौनसारिओ  का  प्रमुख व्यवसाय है। खगास  ( ब्राह्मण और राजपूत  वर्ग ) जौनसारी काफी संपन्न होते है। ये कृषि भूमि के मालिक होते है। कारीगर वर्ग के जौनसारी अपनी कारीगरी और मजदूरी से जीविका चलाते है और प्रायः आत्मनिर्भर होते है।  तीसरा वर्ग ( हरिजन खगास  वर्ग )  आर्थिक और सामाजिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ था।  परन्तु अब सरकारी प्रयासों  से इनकी स्थिति में सुधार हो रहा है। लेकिन खगास वर्ग  की कोल्टा  जनजाति की सामाजिक और आर्थिक दशा बहुत दयनीय है। उत्तराखंड सरकार  इनके उत्थथान  के  प्रयास कर रही है , जिससे इनके सामाजिक और आर्थिक स्तिथि में निरन्तर सुधार हो रहा है। 

  जौनसार भाभर क्षेत्र में पहले प्रत्येक गांव में  ग्राम पंचायत की जगह  " खुमरी  " नामक  समिति होती थी।  गांव के प्रत्येक परिवार का एक सदस्य खुमरी का सदस्य होता था।  खुमरी के मुखिया को  ' ग्राम सायणा '   कहा जाता था।  गांव के छोटे मोटे  विवादों और झगड़ों  का निपटारा खुमरी द्वारा  किया जाता था।  खुमरी से ऊपर खत  नमक संस्था हुआ करती थी, जिसे ' खत खुमरी  ' कहा जाता था।  इसका मुखिया खत सयाणा  कहलाता था।  खत खुमरी द्वारा दो या अधिक गावों  के बीच के मामलो , मालगुजारी या दीवानी मामलो का निपटारा किया जाता था।