उत्तराखंड की धरती वीरो की धरती रही है। यह  पौराणिक काल से कला और आधात्म  का क्षेत्र  रहा  है। समय   के साथ  इसमें कई बदलाव  आये , विज्ञानं भूगोल और शिक्षा के  अलावा स्वतंत्रता  संग्राम में भी यहाँ के लोगो की अग्रणी भूमिका रही है। आज के इस लेख में हम आपको भारत के उन वीरो से परिचय कराएंगे  ,जिन्होंने मात्र भूमि की रक्षा के  लिए अपने प्राणो का बलिदान देने में पल भर की  भी देर नहीं लगाई। 

यह लेख आपके सामान्य ज्ञान  को तो  बढ़ाएगा  ही  बल्कि विभिन्न परीक्षाओ में पूछे जाने वाले प्रश्नो के उत्तर देने में भी मदद  करेगा. 

उत्तराखंड  के स्वतंत्रता  संग्राम सेनानी 

कालू  सिंह  महरा -  कालू सिंह महरा को उत्तराखंड का पहला स्वत्रंत्रता संग्राम सेनानी कहा जाता है. इनका जन्म 1831 में चम्पावत जिले के लोहाघाट क्षेत्र के बिसुंग  गांव  में हुआ था. 1857 की क्रांति के दौरान इन्होने क्रांतिवीर नामक गुप्त संगठन बनाया था,जिसने अंग्रेजो के खिलाफ कई आंदोलन चलाई।  उस समय कुमाऊ  के कनिश्नर हेनरी रैमजे हुआ करते थे।  रैम्जे ने  कालू सिंह महरा को जिन्दा या मुर्दा पकने के लिए इनाम की घोसणा की थी। कालू महरा की मृत्यु 1906  में हुई।  


बद्रीदत्त पांडे-  इनका जन्म  15  फरवरी ,1882 को हरिद्वार के कनखल में हुआ था।  बद्रीदत्त पांडेय ने पत्रिकारिता के जरिये अंग्रेजी शासन की नीव हिला दी थी । इन्होने 1813 में अल्मोड़ा से अल्मोड़ा अख़बार का प्रकाशन किया ,जिसमे इन्होने अंग्रेजो पर तीखे व्यंग्यातमक प्रहार किये। धीरे धीरे अख़बार के माध्यम से सामान्य जनमानस में अंग्रेजी शासन के प्रति रोष उत्पन्न होने लगा और लोग स्वतंत्रता  के  लिये जागरूक होने लगे. अल्मोड़ा अख़बार की लोकप्रियता से घबराकर तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर ने सन  1918 में अख़बार पर प्रतिबन्ध लगा दिया।  इसके बाद पांडेय जी ने एक अन्य अख़बार शक्ति का प्रकाशन भी अल्मोड़ा से  शुरू  किया। 


बद्री दत्त पांडेय जी ने कई  आंदोलनों  का सफल नेतृत्व किया , उनके द्वारा कुली उतार ,कुली बेगार और कुली बर्दायस आंदोलन चलाया। जिसके तहत उत्तरैणी के दिन बागेश्वर  के सरयू नदी के तट पर कुली बेगार के रजिस्टरो  को  बहा दिया गया और यह  एलान किया गया कि  कोई भी भारतीय नागरिक आज से  अंग्रेजो की मनमानी  सहन नहीं  करेगा ।  इस आंदोलन की सफलता के इन्हे कुर्मांचल केसरी की उपाधि से विभूषित किया गया।  स्वाधीनता संग्राम के दौरान वे 5  बार जेल गए। अपने जेल प्रवास के दौरान उन्होंने कुमाऊँ  का इतिहास नामक प्रसिद्ध किताब लिखी,जो कुमाऊँ  के स्वतंत्रता संग्राम इतिहास ,भूगोल और कला एवं संस्कृति के बारे में गहरी जानकारी देती है. बद्री दत्त  पांडे  1937 में केंद्रीय असेंबली और 1946 में उत्तर प्रदेश में काउंसलर  चुने गए. स्वतंत्रता  के बाद 1955  में लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। 13 जनवरी  1965 को उनका निधन हो गया। 

बैरिस्टर मुकुन्दीलाल -  इनका जन्म 1885  में चमोली जिले के पाटली गांव  में हुआ था। 1913 से 1919 तक इन्होने इंग्लैंड में कानून की पढ़ाई  की ,उस दौरान इनका परिचय बाल गंगाधर तिलक से हुआ। तिलक कांग्रेस के तेज तर्रार नेता और भारतीय स्वतंत्रता  के अग्रदूत कहे जाते है. तिलक से परिचय के बाद मुकुन्दीलाल के मन में भारत माता को आजाद करने के लिए छटपटाहट  बढ़  गयी। भारत वापस आकर उन्होंने 1926  में स्वराज दल के टिकट पर गढ़वाल से चुनाव जीता। 1962  से 1967  तक उन्होंने लैंसडौन विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद उन्होंने सक्रिय  राजनीति से संन्यास  ले लिया। 

राजनीति को त्यागने के बाद उन्होंने अपना जीवन कला और साहित्य के लिए  अर्पण कर दिया । गढ़वाली कला और साहित्य को आगे ले जाने में मुकुन्दी लाल का बहुत  योगदान है। गढवाली  चित्रकाला  शैली के प्रसिद्ध चित्रकार  मोलाराम के चित्रों का उन्होंने  संग्रह तैयार करवाया।  1969 में उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तक गढ़वाल पेंटिंग्स  भारतीय चित्रकला का अनमोल रत्न है। 

खुशीराम आर्य - इनका जन्म नैनीताल जिले के हल्दूचौड़ नमक गाव में हुआ था। इन्होने भारतीय समाज में व्याप्त कुप्रथाओ जैसे बाल विवाह,मदिरापान,छुवा छूत को समाप्त करने के  लिए सम्पूर्ण कुमाऊँ में  जागरूकता अभियान चलाया।  खुशीराम आर्य जी ने शिल्पकर  सभा का गठन कर शिल्प विद्यालयों का संचालन किया जिससे बच्चो को कला और शिल्प की शिक्षा दी  जाय और वे अपने पैरो पर खड़े हो सके। शिल्प विद्यालय स्वाभिमान और आत्मनिर्भता का प्रतीक बन गये  सन  1946  में वे कांग्रेस के टिकट पर विधान सभा के लिए चुने गए और 1967  तक विधानसभा के सदस्य रहे । 


बलदेव सिंह आर्य - इनका जन्म 1912 में पौड़ी के उमथ गांव में हुआ था। ये एक स्वतंत्रता  सेनानी ,समाज सेवी, हरिजन उत्थान को समर्पित गाँधीवादी विचारक थे। ये सर्वाधिक लम्बी अवधि तक मंत्रिपद को सुशोभित करने वाले विधायक रहे है। 1950  में ये सर्वप्रथम प्रॉविन्सियल  पार्लियामेंट के सदस्य मनोनीत हुए।  इसके बाद ये 1952 ,1957,1962,1974, 1980, 1985 में विधनसभा और 1968 से 1974 तक विधानसभा के सदस्य रहे।  हर बार यह मंत्रिमंडल के भी सदस्य रहे। कई वर्षो तक बलदेव आर्य अखिल भारतीय हरिजन सेवक संघ के उपाध्यक्ष भी रहे। 

गोविन्द बल्लभ पंत-  पंत जी का जन्म 10 सितम्बर ,1987 को ग्राम खूट ,जिला अल्मोड़ा में हुआ था।  जवाहर लाल नेहरू ने इन्हे हिमालय पुत्र की उपाधि से अलंकृत किया था। उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें गोविब्द बल्लभ "महाराष्ट्र कहा करते थे। 1909 में इलाहाबाद से कानून की डिग्री लेने के बाद उन्होंने काशीपुर से वकालत शुरू की। 1914  में इन्होने कशी नागरी प्रचारणी सभा की एक सहायक  के रूप में काशीपुर में प्रेमसभा की स्थापना की। इसके बाद 1916  में इन्होने कुमाऊँ परिषद् का गठन किया। 1923 में स्वराज पार्टी के टिकट पर नैनीताल जिले संयुक्त प्रान्त (वर्तमान उत्तेर प्रदेश ) की विधान परिषद् के सदस्य निर्वाचित हुए. 1927 में इन्हे संयुक्त प्रान्त (उत्तर प्रदेश ) की कांग्रेस कमिटी का अध्यक्ष चुना गया। 



29 नवंबर ,1928 को लखनऊ में साइमन कमीशन के विरुद्ध प्रदर्शन में जवाहर लाल नेहरू के रक्षा करते समय इन्हे गंभीर छोटे आयी।  1943में वे अखिल भारतीय संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष तथा केंद्रीय विधानसभा के सदस्य चुने गए। 1937 में पंत जी के नेत्तृव में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश  मे मन्त्रिमंडल का गठन किया। 

9 अगस्त 1942 को उन्हें  गिरफ्तार किया गया और अहमदनगर किले में नजरबन्द रखा गया। वे 1946 में पुन: उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए और मुख्मंती बने। 10 जनव री 1955 को केंद्रीय  कैबिनेट में गृह मन्त्री  बने।  26 जनवरी ,1947 को उनका देहांत हो गया। 

हर्ष देव ओली - हर्षदेव ओली का जन्म 1890 को खेतीखान,चम्पावत में हुआ था। इन्हे काली कुमाऊँ का शेर  के नाम से जाना जाता है। इन्होने कुली बेगार ,कुली उतार आंदोलन में सक्रिय योगदान दिया। 1930 मे ओली जी ने जंगलात कनून के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया। 

अनुसूया प्रसाद बहुगुणा - बहुगुणा जी का जन्म 1894  को अनुसुआ देवी पूरी में हुआ था। ये कुली बेगार आंदोलन और स्वास्त्रन्ता आंदोलन ने सक्रीय रहे। इन्हे गढ़ केसरी  के नाम से जाना जाता है . 1921 में उन्हें गढ़वाल युवा सम्मेलन का अध्यक्ष चुना  गया। 1931 में  वे जिला बोर्ड के चेयरमैन नियुक्त हुए.


प्रयाग दत्त पंत - इनका जन्म 1898में पिथौरागढ़ के चण्डाक  में हुआ था इलाहाबाद से पढ़ाई पूरी करने के बाद ये स्वतंत्रता  आंदोलन में कूद पड़े। 1921 में असहयोग  आंदोलन के दौरान उन्होंने गांव गांव  जाकर अंग्रेजी शासन के विरुद्ध प्रचार किया। इ सी बीच सरकार  ने कुमाऊँ में धारा 144 लगा दी  और जुबान बंदी का आदेश जारी कर दिया। आदेश का उलंघन करने के अपराध में उन्हें एक वर्ष की कड़ी सजा दी गयी तथा सेंट्रल जेल बरेली में रखा गया। 1935 में इनका निधन हो गया।  उत्तराखंड की धरती पर स्वतंत्रता  आंदोलन शुरू करने श्रेय प्रयाग  दत्त पंत को  जाता है। 

मोहन सिंह मेहता -इनका जन्म 1897 में बागेश्वर जिले के वज्यूला गांव में हुआ था। कत्यूर क्षेत्र में इन्होने स्वराज प्राप्ति हेतु जनजागरण अभियान चलाया। 1921 में इन्होने कुमाऊँ परिषद् की एक शाखा गठित की और कुली बेगार  आंदोलन का नेतृत्व किया। इन्होने समाज सुधा र के लिए अनेक अभियान चलाए। अनाथो के लिए आर्य अनाथालय ,ग्राम सुधर समिति ,कटाई बुनाई प्रचार केंद्र ,शिशु पालन समिति  जैसे कई सामाजिक कार्यो की बुनियाद रखी।  उत्तराखंड से जेल जाने वाले ये प्रथम  स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। 

इंद्र सिंह नयाल-  ये स्वतंत्रता  संग्राम सेनानी व राजनेता होने के साथ साथ एक लेखक,समाज सेवी तथा गाँधीवादी नायक भी थे। इन्होने 1932 में अल्मोड़ा में कुमाऊँ युवक सम्मेलन की अध्यक्षता की। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान नयाल जी  ने  राजद्रोह के आरोप में जेल गए लोगो की फ्री में पैरवी कर निस्वार्थ देश सेवा का परिचय दिया। 1973 में इन्होने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर  आधारित पुस्तक कुमाऊँ का योगदान नामक पुस्तक लिखी। 


भवानी सिंह रावत - इन्होने  दुगड्डा (पौढ़ी ) में शहीद मेले की शुरुवात की। आजादी की शहादत में उन्होंने अपना जीवन बलिदान कर दिया। चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व वाले हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातान्त्रिक संघ से   वे उत्तराखंड के  एकमात्र सदस्य थे। पुलिस  से बचने  के लिए वे आजाद व अन्य साथियो को अपने गांव दुगड्डा ले गए ,जहाँ  आजाद ने पिस्टल की ट्रेनिंग ली।